आरक्षण - लघुकथा


लघुकथा  
                                     आरक्षण
बात बहुत कुछ पुरानी ही है । लगभग अट्ठाईस साल पहले की । भारत के गोदावरी नदी के किनारे बसे गांव की । गांव गोदावरी और वाण नदी के संगम पर बसा हुआ था । इसलिए इस गांव का नाम वाणीसंगम है । गांव नदी किनारे ढलान पर इस तरह बसा हुआ था कि मान लो कोई भागते हुए नदी की ओर निकले तो नदी के बहाव में गिरने से अपने आप को नहीं रोक सकता था ।  नदी के भी दो हिस्से बनाये गये थे नदी का नीचले छोर का उपयोग बौद्ध , कुम्हार , कोली तथा अन्य पिछडी जाति के लोग करते थे हैंडपंप बिगड जाने पर सबकी मायें, बहनें या फिर दादियां नदी के नीचले हिस्से के बहाव से पानी लाती इस ओर ही अंतिम संस्कार का कार्यक्रम किया जाता गोदावरी नदी की तथाकथित पावनता के चलते पडोस के तहसिल के लोग भी इसी जगह मूर्दों को ले आते इस कारण नदी का यह हिस्सा हमेशा गंदगी भरा रहता ऊपरी हिस्सा सवर्णों के लिए आरक्षित-सा था
गांव की संरचना भारत के आम गावों सी थी । गांव के पूरब की ओर नवबौद्ध बस्ती थी । बस्ती के लिए स्वतंत्र हैंडपंप था । सवर्ण बस्ती में भी अलग से हैंडपंप दिया गया था । किसी ने कहा नहीं था पर बौद्ध बस्ती का कोई बच्चा भी सवर्ण बस्ती के हैंडपंप पर पानी नहीं पीता फिर चाहे कितनी भी प्यास क्यों न लगी हो , पता नहीं कौन सी परंपरा का वहन हो रहा था । परंतु गांव का कोई भी व्यक्ति बौद्ध बस्ती के हैंडपंप पर पानी भरने कभी कभार दिखाई देता । हां , सवर्ण बस्ती को गांव कहा जाता और बौद्ध बस्ती को बुधवाडा
'गांव' की एक बुढिया पारूमाय हर दिन अपना तांबे का लोटा लेकर लाठी टेकते हुए बौद्ध बस्ती के हैंडपंप पर आती । यह हैंडपंप उसके घर के नजदीक था । जब भी कोई बुढा बुजुर्ग पानी भरने आता वहां पर बरगद के पेड के समान फैले पुराने नीम के पेड के नीचे खेल रहे संजा, बाल्या , परभ्या, बंडया, उद्या, अरुण्या कोई  न कोई उस बुजुर्ग की मदद करता । ये बच्चे स्वयं जाकर बुजुर्ग से कहते , 'बाबा या माई मैं हैंडपंप चलायूं ?' और वह व्यक्ति खुशी से 'हां' कहता । एक दिन बच्चे हमेशा की तरह खेल रहे थे । एक दिन पारूमाय पानी भरने आयी तो बाल्या ने उत्साह से कहा , 'माई मैं हैंडपंप चलायूं ।' बुढिया ने चिल्लाकर कहा, 'नहीं ,दूर खडा रह ।' बाल्या को पानी पीना था तो वही खडा रहा । इधर उधर हाथ हिलाते हुए उसका हाथ हैंडपंप को लगा । पारूमाय ने गुस्से से झुँझलाते  हुए दूर खडे रहने के लिए कहा और लोटे का सारा पानी उंडेल दिया । बाल्या को लगा ये क्या हुआ ? उसने फिर से हैंडपंप को छुआ । पारूमाय  फिर चिल्लायी और गालियां देने लगी । गाली-गल्लौज सुनकर बाकी बच्चे भी वहां आ गये । बाल्या के बाद दूसरे बच्चों ने भी वैसा ही किया । पारूमाय चिल्लाते हुए, गालियां देते हुए बच्चो के पीछे उन्हें मारने के लिए दौडने लगी । सारे बच्चे खिलखिलाकर हंसने लगे और इधर -उधर भागने लगे । अब बच्चों के लिए यह नया खेल बन गया था । यह सारा शोरशराबा वहां पर बढई का काम कर रहे बाल्या के बापू ने सुना और अपनी जगह से उठकर बच्चों को डांटते हुए सुनया , 'खबरदार ! जो किसी ने हैंडपंप को छुआ, एक-एक की टांग तोड दूंगा ।' बच्चों में बाल्या के बापू का खौप था । सभी बच्चे जहां के तहां खडे रहे । पारूमाय ने अपना लोटा भर लिया और लाठी टेकते हुए जाने लगी । बच्चे सहमकर धीरे धीरे एक दूसरे के पास आ गये और नये खेल की नीति बनाने में जुट गये ।

डॉ. संजय रणखांबे
सहायक प्राध्यापक ,
हिंदी विभाग ,
डाँ. अण्णासाहेब जी. डी. बेंडाले
महिला महाविद्यालय , जलगांव -425001

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