सूरजपाल चौहान की कहानियाँ और आंबेडकरवादी-संघर्ष-चेतना
(दलित विमर्श)
                                                     डॉ. संजय रणखांबे
                                                     हिंदी विभाग
                                                     डॉ. अण्णासाहेब जी.डी.बेंडाळे
                                                     महिला महाविद्यालय, जलगाँव
                                                     मोबा. 9096306029
                                                   dr.sanjay.rankhambe@gmail.com
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

            अपने  जीवन काल में ही अपने विचारों से साहित्य , कला तथा ज्ञान की सभी शाखाओं को प्रभावित करनेवाले  व्यक्तित्व है- डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर  उनके जीवन एवं दर्शन के प्रभाव से महाराष्ट्र में दलित साहित्य-आंदोलन प्रारंभ हुआ मराठी साहित्य आंदोलन के प्रभाव से समूचे देश तथा सभी भारतीय भाषाओं में अंबेडकरवादी साहित्य का प्रादुर्भाव हुआ हिंदी साहित्य में भी कहानी , उपन्यास नाटक , कविता आदि विधाओं में अब तक जो समुदाय हाशिए पर रखे गए थे उन्होंने आंबेडकर के जीवन-दर्शन एवं प्रेरणा से अपने अस्तित्व एवं अस्मिता को अभिव्यक्त किया यह संपूर्ण साहित्य आज आंबेडकरवादी साहित्य के रूप में प्रस्थापित साहित्य के सामने अपनी अलग पहचान के साथ खड़ा है प्रारंभ में अस्वीकार , कटु आलोचना का सामना करते हुए आज आंबेडकरवादी साहित्य ने  अपने मानदंड स्थापित कर प्रस्थापित साहित्य को भी प्रभावित किया है वर्तमान दलित साहित्य तथा आंबेडकरवादी चेतना के अंत:सम्बन्ध को व्यक्त करते हुए हेमलता महीश्वर लिखती हैं- “दलित साहित्य ने बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के अस्तित्व चेतना की क्रांति को अपने भीतर रचा पचा लिया है और परिणाम यह है कि अपने सृजन से वह यथास्थितिवादियों पर कड़े प्रहार कर रहा है1   
        हिंदी में सूरजपाल चौहान आंबेडकरवादी विचारों से प्रभावित साहित्यकार है उनके संपूर्ण साहित्य में दलित जीवन ,अन्याय ,अत्याचार, उत्पीड़न तथा शोषण के साथ आंबेडकरवादी संघर्ष- चेतना है उनकी कहानियां भी आंबेडकरवादी चेतना की संवाहक है उनका ‘हैरी कब आएगा’? कहानी-संग्रह की कहानियां उनकी आंबेडकरवादी चेतना - संघर्ष चेतना की यथार्थ अभिव्यक्ति है  इस संबंध में प्रमोद सिंह लिखते हैं- सामाजिक परिवर्तन, न्याय , समता, यथार्थ ,लौकिक और वैज्ञानिक प्रतिमाओं को आधार मानकर तथा मनुवादी व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह,  आक्रोश , दलित व्यथा,  भोगे हुए यथार्थ,  सामंती आतंक और अत्याचार का विरोध करते जो साहित्यकार बुद्ध का अमर संदेश अत्त दीपो भव को जन जन तक पहुंचाने में ली है उनमें सूरजपाल चौहान प्रमुख हैं 2
          सूरजपाल चौहान की परिवर्तन की बात कहानी डॉ. आंबेडकर द्वारा चलाए गए आंदोलन की परिचायक है डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने दलित भाइयों को सवर्ण समाज द्वारा दलितों पर थौंपे गए घिनौने काम न करने का आह्वान किया था तत्कालीन महाराष्ट्र की महार जाति को गांव में अगर कोई जानवर मरता है तो उसे गांव के बाहर फेंकने , गांव की गंदगी साफ करने का काम सौंपा था  इस काम के कारण दलित समाज घृणा, तीरस्कार और अपमान सहन करता था डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने समाज को यह आह्वान किया, संदेश दिया कि अगर आपको सम्मान और स्वाभिमान पाना है तो यह घिनौने  काम छोड़ने होंगे उनके  संदेश के अनुसार महाराष्ट्र के दलितों ने यह काम छोड़ दिया उसके लिए सवर्णों के अन्याय , अत्याचार को सहन किया सूरज सूरजपाल चौहान जी की परिवर्तन की बात इस कहानी में यही संदेश दिया है कहानी में गांव का रघु ठाकुर दलित किसना को अपनी मरी हुई गाय उठाने के लिए बुलाता है परंतु आंबेडकर के विचारों से प्रभावित किसना तथा गांव के सभी चमार आदि दलित एक स्वर में इस घिनौने काम को करने से डंके की चोट पर मना करते हैं वह रघु ठाकुर से कहता है ठाकुर, मैंने और मेरे मोहल्ले के सभी लोगों ने मरे जानवर उठाना बंद कर दिया है3 रघु ठाकुर थानेदार के माध्यम से किसना पर दबाव बनाता है परंतु किसना टस से मस नहीं होता वह दो टूक जवाब देता है- साहब, क्या आप नहीं चाहते कि हम अपना यह धंधा छोड़कर कोई और धंधा करें.... क्या हम सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत नहीं कर सकते 4 गांव के किसना समेत सभी चमार किसी भी कीमत पर मनुवादी व्यवस्था द्वारा छीने गए अपने सम्मान को हासिल करने के लिए किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार होते हैं यह आंबेडकरवादी संघर्ष चेतना की ही देन है
          टिल्लू का पोता कहानी की कमला डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की सम्मान एवं समानता की लड़ाई महा के चवदार तालाब सत्याग्रह की याद दिलाती है डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने दलितों के सम्मान, समानता तथा मनुष्यता के अपने अधिकार के लिए महा के चवदार तालाब पर मनुवादियों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन किया इस आंदोलन ने महाराष्ट्र के हर एक दलित व्यक्ति को झकझोर दिया  वह अपने सम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए आंदोलन में शामिल हुआ उत्तरी भारत में यह जागृति विलम्ब से हुई परंतु वर्तमान समय में संपूर्ण भारत को भारत का दलित समुदाय अपने हक, अधिकार, सम्मान, स्वाभिमान के प्रति सचेत है इसी सामाजिक सच्चाई को टिल्लू का पोता कहानी की कमला के माध्यम से सूरजपाल चौहान जी ने अभिव्यक्त किया है कमला अपने पति हरी सिंह के साथ अपने गांव जा रही है अत्याधिक प्यास के कारण वे रास्ते में गांव की बगिया वाली प्याऊ पर पानी पीने जाते हैं वहां बूढा किसान पूछता है कि कौन गांव जा रहे हो? किसके यहां जा रहे हो?”5 तब हरी सिंह जवाब देता है कि वह टिल्लू का पोता है तब बूढ़े किसान को टिल्लू का नाम सुनते ही याद आता है कि वह भंगी है  वह चीख कर उन्हें रोकता है और स्वयं दूर से पानी देता है और कहता है अरे, भंगानियाँ, नेक पीछे कू के पानी पी, यह शहर ना है गांव हैं, मारे लठिया के कमर तोड़ द जाएगी सारे (साले) भंगिया - चमरा के हर में जाकै  नए-नए लत्ता (कपड़े) पह के गांव में आ जात हैं कुछ (कुछ) पतौ न चलतु की जे भंगिया - चमार हैं  कि ना (नहीं)6  बूढ़े किसान की यह बात सुनकर कमला अत्यंत क्रोधित होती है और चीखते हुए कहती है- चलो, यह पानी नहीं जहर है  अपने घर जाकर पिएंगे... नहीं चाहिए आप का मीठा पानी....7 कमला का अपने सम्मान और स्वाभिमान के लिए अभिव्यक्त आक्रोश और संघर्ष करने के लिए तैयार रहना आंबेडकरवादी विचारों का अनुसरण करना है  
           छूत कर दिया कहानी डॉ. बाबासाहब अंबेडकर के पढ़ो, जूडो और लड़ो इस संदेश को प्रसारित करती है सभी प्रकार के अन्याय, शोषण और असमानताओं से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है- शिक्षा इसी कारण इस कहानी का बाबूलाल मसीह दलितों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार का कार्य करता है उन्हीं की प्रेरणा से गांव का बिहारी लाल केन आई. . एस. बन जाता है गांव का सवर्ण ग्राम प्रधान गुलाबचंद बिहारी को बिहारी लाल के से पैसे तो चाहिए परंतु गांव का एकमात्र आई..एस. होकर भी उसे मान सम्मान नहीं देता इसके विपरीत गांव की रामलीला में राम का पात्र बना लड़का बिहारी लाल के से कहता है- अरे चमार के, क्या छू करेगा?”8 इस पर वह एक मुक्का उसके चेहरे पर दे मारता है इस घटना से सचेत होकर गांव के सभी  दलित संगठित होकर बिहारीलाल के पक्ष में खड़े होकर कहते हैं यदि बिहारी जी को छू भर भी दिया तो पूरे गांव की ईंट से ईंट बजा दी जाएगी9 ग्राम प्रधान को धिक्कारते हुए वे कहते हैं- क्यों ग्रामप्रधान, तुम्हें या रामलीला कमेटी के सदस्यों को बिहारी जी से रुपया लेते लाज न आई? रुपया भी तो बिहारी ने अपनी जेब से निकालकर अपने हाथों से ही दिया था, तब तुम्हें छू नहीं लगी?”10 इस प्रकार प्रस्तुत कहानी दलितों में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के पढ़ो, जुड़ो और लड़ो के संदेश को लोगों में प्रसारित करने का प्रयास कर अपनी सामाजिक दायित्व को निभाती है
           चौहान जी की घाटे का सौदा कहानी की आनंदी भी बाबासाहब के विचारों से प्रभावित है  वह अपने उच्चाधिकारी पति के साथ सवर्ण बस्ती में रहती है अपने घर में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का बड़ा-सा फोटो लगाती है जब बड़ी बेटी टोकती तो कहती है- रजनी, तुम्हारे पापा अगर गांव की जहालत से उठकर यहां तक पहुंचे हैं, तो इसके पीछे इस महान व्यक्ति के जीवन संघर्षों का प्रतिफल ही है वरना ये भी किसी चौधरी या ठाकुर के खेतों में हल चला रहे होते या किसी नगरपालिका में झाड़ू11 प्रस्तुत कहानी के जरिए सूरजपाल जी यह संदेश देना चाहते हैं कि भारत के समस्त दलितों की उनके अन्याय, अत्याचार, शोषण, उत्पीड़न और घिनौनी जिंदगी से मुक्ति डॉ. बाबासाहब अंबेडकर के जीवन-कार्य और संघर्ष से ही संभव हो सकी है
           डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का संपूर्ण जीवन अपने मानवीय अधिकारों और हकों के लिए मनुष्य ने निरंतर संघर्षरत रहना चाहिए इसका द्योतक है इसके लिए वे युवकों को कहते हैं कि दीर्घोद्योग और परिश्रम से ही यशप्राप्ति होती है12 इसी प्रेरणा को अपना ऊर्जा स्त्रोत मानकर दलित समुदाय के लोग अपना जीवन यापन करते हैं जहां उनके हक अधिकार पर आक्रमण होता है तो स संगठित रूप से संघर्ष करते हैं  इसी परिवर्तित दलित जीवन की सच्ची तस्वीर चौहान जी की साजिश कहानी करती है नत्थू जो दलित समाज का बी.ए. पास युवा है अब वह अपना खुद का ट्रांसपोर्ट का धंधा शुरू करने के लिए बैंक मैनेजर के पास आता है परंतु बैंक मैनेजर जो ब्राह्मण हैं उसे बहला-फुसलाकर पिगरी लोन लेने के लिए फार्म भरने के लिए विवश करता है वह अपने साथी सतीश के सामने अपनी घिनौनी सोच उजागर करते हुए कहता है- देख सतीश, अगर यह अछूत अपना खानदानी धंधा बंद कर कोई नया धंधा करने लगेंगे तो आनेवाली पीढ़ियां हमारे घरों की गंदगी कैसे साफ करेगी उस स्थिति में घर की गंदगी क्या तुम खुद साफ करोगे?”13
          बैंक मैनेजर राम सहाय शर्मा की इस साजिश को नत्थू की पत्नी भाप जाती है वह नत्थू की आंखें खोल देती है और नत्थू तथा शांता के नेतृत्व में दूसरे दिन संपूर्ण दलित समुदाय के सैकड़ों लोग बैंक के सामने आंदोलन कर बैंक को घेर लेते हैं वह सभी नारा लगाते हैं कि मनचाहे पैसे के लिए कर्ज देना होगा, पुश्तैनी धंधे में रखने की साजिश बंद करो, हमें भी बहुमुखी विकास का अवसर दो14 डॉ. बाबासाहब अंबेडकर द्वारा स्वाभिमान, स्वावलंबन और सम्मान के लिए मनुष्य के संघर्ष और संगठित संघर्ष की आवश्यकता व्यक्त की थी प्रस्तुत कहानी इसी सामाजिक आवश्यकता को व्यक्त करती है
                अंगूरी कहानी की अंगूरी के माध्यम से सूरजपाल चौहान जी ने यह संदेश दिया है कि नारी को अपने सम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता होती है अंगूरी जब यह कहती है कि मैं अहिल्या ना हूं, मैं अंगूरी हूं, अंगूरी15 वह अपनी आत्मरक्षा के लिए निश्चित रूप से डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और उनके संघर्षशील दर्शन से ही ऊर्जा ग्रहण करती नजर आती है  गांव की मनुवादी-पुरुषसत्ताक व्यवस्था तथा सवर्ण पुरुषों के वासना से लालायित नजरिए के बीच अपनी सम्मान रक्षा केवल भाग्य, भगवान के भरोसे ना होकर स्वयं ही करनी होगी यही सोच कर अंगूरी बड़ी चतुराई से मुखिया पंडित चंद्रभान और काले पहलवान को सबक सिखाती है
                डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि भारत की समस्त दुर्दशा का कारण भारत की जातिव्यवस्था है  इस विषमताधारित जातिव्यवस्था ने  केवल निम्न जातियों का बल्कि सभी सवर्ण समझी जानेवाली जातियों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक अध:पतन किया है इसी कारण डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं कि ‘जातिभेद को मिटाए बिना उन्नति का मार्ग असंभव है16 गांव इस जातिव्यवस्था की बनाए में अग्रसर है  : डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने समुदाय के लोगों को गांव छोड़कर शहर में आकर बसने का संदेश दिया इस संदेश को सुनकर कई लोग शहर आकर कुछ मायने में जाति व्यवस्था के कठोर बंधनों से आजाद हु और अपनी प्रगति के नए द्वार खोलने लगे  घमंड जाति का कहानी का किरपाल अपने पिता काली प्रसाद के  साथ कलकता कर पढ़ाई लिखाई कर नौकरी पाता है  वही गांव के ठाकुर का बेटा वीरू जो उसका बचपन का दोस्त है रूपए 400 माह पर एक लाला की चक्की पर काम करता है इसीलिए वीरू के पिता अपने बेटे की अवस्था और किरपाल की प्रगति देखकर सच स्वीकारते हुए कहते हैं- हां भया, तू ठीक कह रहा है, बिना शिक्षा के मनुष्य पशु समान है हमें तो जाति में ऊंचा होने का घमंड ही ले बैठा17
             ‘चेता का उपकार कहानी की ठाकुर जिले सिंह की पत्नी रमा एक र विषमतावादी जातिव्यवस्था से जन्मी छुआछूत का विरोध करती है तो दूसरी ओर अपने सम्मान तथा स्वतंत्रता के लिए बाधा बनी पुरुषसत्ताक व्यवस्था की धज्जियां उड़ाती है वह दलित चेता  के साथ संबंध स्थापित कर अपनी कोख भर लेती है और अपने नामर्द पति ठाकुर जिले सिंह के मुंह पर तमाचा जड़ देती है  तो दूसरी ओर वह चेता का हाथ पकड़ कर उसे गिलास से पानी देती हुई कहती है, तू पानी गिलास में पीने से सिर्फ इसलिए डरता है कि तू अछूत है.... अरे तू भी हमारी तरह इंसान है18 इस तरह से यह कहानी भी डॉ. बाबासाहब अंबेडकर के अपनी अस्मिता, अस्तित्व तथा समानता के लिए संघर्ष करना चाहिए, इस सार्वत्रिक सत्य को उजागर करती है
             जलना कहानी के तेजा चूड़ा के माध्यम से सूरजपाल जी ने डॉ. बाबासाहब अंबेडकर  के इस संदेश को ही अभिव्यक्ति दी है कि आर्थिक स्वावलंबन के बिना मान सम्मान नहीं प्राप्त हो सकता साथ ही इस मार्ग में कई बाधाओं का सामना करना होगा यह चेतावनी भी इस कहानी के माध्यम से लेखक ने दी है
            डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने देवी देवताओं से जुड़े कर्मकांड बाह आडंबर की कटु आलोचना की है इन मिथ्या परंपराओं और प्रथाओं के कारण ही समाज की अवनति होती है  इसी सत्य का उद्घाटन करनेवाली सूरजपाल चौहान की कहानी है- प्राण प्रतिष्ठा  मंदिर का पुजारी लेखक से मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के पीछे छिपे रहस्य का उद्घाटन करते हुए कहता है, उस मूर्ति को हम लोग दूध, गंगाजल आदि से इसलिए धोकर पवित्र करते हैं कि भगवान की उस मूर्ति को बनानेवाले  अछूत व नीच जाति के लोग होते हैं जाने किस-किस भंगी, कुम्हार या चमार के हाथ उस मूर्ति पर लगते हैं इसलिए उस मूर्ति को दूध और गंगाजल से धोकर पवित्र किया जाता है19
                डॉ आंबेडकर के मतानुसार धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं’ वे आगे कहते हैं कि ‘ जो धर्म मनुष्य के साथ मनुष्य जैसा व्यवहार नहीं करता उसे धर्म कैसे कहें?’20 बाबासाहब के इस विचार को सूरजपाल चौहान जी ने अपनी अपना-अपना धर्म कहानी के माध्यम से अभिव्यक्त किया है इस कहानी का पात्र रामचरण पांडे जो सवर्ण होकर अपनी गरीबी, दरिद्रता और पारिवारिक विवशता के कारण सफाई मजदूर का काम स्वीकार करता है एक दिन नाले में सफाई करते हुए घुटकर उसकी मौत हो जाती है तो उसके रिश्तेदारों में से कोई एक कहता है धर्म-विरुद्ध कार्य करने वाले को ऐसी ही कुत्ते की मौत नसीब होती है अरे, पांडे होकर गंदी नालिया साफ करता था लाज नहीं आई उसे नीच काम करते21
             इसके विपरीत कहानी के अन्य दलित पात्र चीफ इंजीनियर सांगवान के चाचा लीलाधर की गांव के ठाकुरों और बामनों द्वारा 30 वर्ष पहले इसलिए हत्या की जाती है कि वह बी.ए. कर एल.एल.बी. कर रहा है अर्थात शूद्र होकर ज्ञान प्राप्त करता है उसकी हत्या कर गांव के ठाकुर और बामन दलितों को ललकार ते हुए कहते हैं हमने लीलाधर की हत्या करके कोई अपराध नहीं किया है वह धर्म के विरुद्ध कार्य कर रहा था, छोटी जाति में जन्म लेकर उसे पढ़ना-लिखना नहीं चाहिए था22
            इस प्रकार कह सकते हैं कि सूरजपाल चौहान की कहानियां डॉ. बाबासाहब अंबेडकर के विचार एवं दर्शन की सशक्त अभिव्यक्ति करती है दलितों को अपने अन्याय, अत्याचार, शोषण और उत्पीड़न से भरे  जीवन से  मुक्ति के लिए शिक्षा, संगठन एवं संघर्ष का मार्ग अपनाने का संदेश देती है  उनकी कहानियां विषमताधारित जातिव्यवस्था की धज्जियां उड़ाती हुई समतामूलक समाज की स्थापना के लिए प्रयास करती है बाबासाहेब ने यह सन्देश दिया था कि ‘जागृति के अलाव को कभी बूझने न दें,’23 सूरजपाल जी की कहानियां पूरी प्रामाणिकता उनके इस सन्देश का पालन करती नजर आती है अपनी कहानियों के माध्यम से सूरजपाल चौहान जी अंबेडकरवादी चेतना - संघर्ष चेतना को समाज में जागृत कर अपने अंबेडकरवादी लेखक के दायित्व को भली-भांति निभाते हैं इसी कारण जय प्रकाश कर्दम उनकी कहानियों के सम्बन्ध में कहते हैं- “ये कहानियां जहाँ एक ओर दलितों की दीनता, दारुण्य और दमन की गाथा हैं, वहीं उनमें उपजते स्वाभिमान और संघर्ष-चेतना की भी संवाहक हैं24
संदर्भ :
1.दलित वार्षिकी – 2005, संपा. जय प्रकाश कर्दम, पृ. 64
2. हैरी कब आएगा?, सूरजपाल चौहान, पृ.10
3. वही, पृ.19
4. वही, पृ.21
5. वही, पृ.25
6. वही, पृ.26
7. वही, पृ.26
8. वही, पृ.31
9. वही, पृ.31
10. वही, पृ.31
11. वही, पृ.33
12. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लेखन आणि भाषणे, खंड-18, भाग-2, पृ.191
13. हैरी कब आएगा?, सूरजपाल चौहान, पृ.40
14. वही, पृ.42
15. वही, पृ.47
16. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लेखन आणि भाषणे, खंड-18, भाग-1, पृ.405
17. हैरी कब आएगा?, सूरजपाल चौहान, पृ.56
18. वही, पृ.60
19. वही, पृ.69
20. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लेखन आणि भाषणे, खंड-18, भाग-1, पृ.435
21. वही, पृ.80
22. वही, पृ.81
23. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लेखन आणि भाषणे, खंड-18, भाग-1, पृ.34
24. हैरी कब आएगा?, सूरजपाल चौहान, पृ. 9


Comments

Popular posts from this blog

सावित्रीबाई फुले की कविता

रजत रानी मीनू की कहानी

दुष्यंत कुमार की परिवर्तनवादी कविता